Thursday, March 7, 2019

मेरी आखरी सास थी

मेरी आखरी सास थी ।

मेरी आखरी सास थी, जिने की कुछ आस थी ।
मेरी आखरी सास थी, जिने की कुछ आस थी ।

अस्पताल के उस कमरेमे, दरवाजे झाकती एक नन्ही जान थी,
उस नन्ही जान ने कहा, पापा आप घर कब आओगे आपके बीना अच्छा नही लगता ।

लगा... लगा उस नन्ही जान को गलेसे लगाऊ,
बाप वाला प्यार फिरसे जताऊ ।
लगा...लगा उस नन्ही जान को गलेसे लगाऊ,
बाप वाला प्यार फिर उसे जताऊ ।

लेकिन... लेकिन उस नन्ही जान को बाप वाला प्यार में दे न सका । जी भर के उसे गले लगा न सका ।

सिगरेट के उसे धुवे ने मेरी सारी जिंदगी राख कर दी ।
चंद पलो की गुज़ारिश की थी ज़िंदगी से मैंने मेरी सारी गुज़ारिश को ज़िंदगी ने एक सिगरेट की तरह रोंद डाला

वही में बुझ गया उस काले धुवे की तरह, आसमान में जा मिली ।
वही मेरी आखरी सास थी, जिनके आखरी आस थी ।


 - पराग मानकर

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